रेशम मित्र रेशम से बुनी, रेशम मित्र की कहानी
भारत वर्ष में रेशम एक वस्त्र ही नहीं बल्कि एक संस्कृति है, जो कभी राजा महाराजाओं की राजसी पोशाक थी आज भी यह सभी वर्गों में उत्सव एवं अन्य कार्यक्रमों में शान का प्रतीक है। उत्तर प्रदेश के बनारस की बनारसी रेशमी साड़ी भारत वर्ष में अपना अग्रणी स्थान रखती है।
रेशम उत्पादन कार्य कृषि आधारित व्यवसायिक खेती है जिससे अन्य पारम्परिक फसलों से अधिक आय प्राप्त होती है।
रेशम धागा रेशम कीट द्वारा उत्पादित कोकून से बनाया जाता है। रेशम कीट भोज्य पत्तियों को खाकर अपने लार से शरीर के चारों तरफ सुरक्षा आवरण बनाकर कोकून उत्पादित करते हैं। यह भोज्य पत्तियां शहतूती,टसर/अर्जुन, एरी/अरण्डी की होती है। तद्नुसार उत्पादित रेशम के प्रकार का नामकरण कर शहतूती,टसर एवं एरी सिल्क कहा जाता है।
रेशम कीट अण्डों से 8-10 दिन में शिशु कीट बनाये जाने की प्रक्रिया को चाकी कहते हैं। रेशम धागा बनाये जाने के लिए इस कोकून को सुखाया/उबाला जाता है। अगर इसे सुखाया/उबाला नहीं जाता है तो रेशम कीट का प्यूपा लगभग 10 दिनों में मॉथ के रूप में कोकून में छेद कर बाहर आ जाता है।
नर व मादा मॉथ के संगम से मादा मॉथ द्वारा अण्डा दिया जाता है। एक मादा मॉथ से दिये गये अण्डों की मात्रा को एक रोग रहित कीटाण्ड (Disease free laying-DFL) कहा जाता है। एक डी0एफ0एल्स0 में लगभग 400-500 अण्डे होते हैं। इन अण्डों से पुनः नये कीट जीवन की श्रृंखला शुरू हो रही है। शहतूती रेशम के बाई बोल्टीन रेशम के अण्डों को नियत तापमान पर सुरक्षित रखा जा सकता है और आवश्यकतानुसार तापमान बढ़ाकार चाकी का कार्य किया जाता है।
प्राकृतिक रूप से टसर रेशम कीट अपनी भोज्य पत्तियों के पेड़ों पर रहकर कोकून उत्पादित करते हैं। अधिक उत्पादन के उद्देश्य से शहतूती एवं एरी प्रजाति के नये कीट विकसित किये गये हैं। टसर कोया का उत्पादन अभी भी प्राकृतिक वातावरण में किया जाता है।
प्रदेश में 80 प्रतिशत शहतूती कोकून,15 प्रतिशत एरी कोकून एवं 5 प्रतिशत टसर कोकून उत्पादित होता है। कोया से धागा बनाये जाने के लिए तकली, मटका,चर्खा के अतिरिक्त वर्तमान में उन्नत किस्म की ‘‘मल्टीइण्ड रीलिंग मशीन’’ और ‘‘ऑटोमेटिक रीलिंग मशीन’’ (ए0आर0एम0) का उपयोग किया जाता है। धागा बनाने के लिए कोकून उबाल कर एक छोर पकड़कर धागा बनाया जाता है। कई धागों को जोड़कर आवश्यकतानुसार मोटा धागा बनाये जाने की प्रक्रिया को ट्विस्टिंग कहते हैं।
शहतूती रेशम उत्पादन का कार्य कृषकों द्वारा प्रदेश में स्थापित रेशम फार्मों की पत्तियां एवं स्वयं के खेत में शहतूत वृक्षारोपण कर उपलब्ध पत्तियों से विभाग से चाकी कीट प्राप्त कर अपने घरों पर एक हवादार स्वच्छ कमरे (कीटपालन गृह) में कीटपालन कर कोकून उत्पादन किया जाता है। एक एकड़ के शहतूत वृक्षारोपण से प्रति वर्ष 1.2 से 1.5 लाख तक का कोकून उत्पादन हो जाता है जो परम्परागत् खेती की आय का दोगुना है। रेशम उत्पादन कार्य से परिवार के सभी सदस्यों को घर पर ही रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं तथा वर्ष में 80 से 100 दिन का उपयोग कर उपरोक्त आय प्राप्त हो जाती है, जो अन्य पारम्परिक फसलों जैसे धान, गेहूं, मक्का, गन्ना से अधिक है। इस प्रकार कृषक रेशम उत्पादन से जुड़ कर अपनी कृषि आधारित आय को बढ़ा सकते हैं।
टसर रेशम का उत्पादन विभाग द्वारा स्थापित अर्जुन वृक्षारेापित फार्मों एवं वनक्षेत्र में उपलब्ध अर्जुन, आसन के वृक्षों पर ही प्राकृतिक वातावरण में कीटपालन कर कोकून उत्पादन किया जाता है। एक परिवार द्वारा वर्ष में औसतन रू0 30000 से 45000 तक का कोकून उत्पादित कर लिया जाता है।
एरी रेशम के उत्पादन के लिए कृषकों द्वारा अपने खेतों में अरण्डी की बुवाई पारम्परिक रूप से बीज उत्पादन हेतु किया जाता है। उसी अरण्डी पौध की 20-25% पत्तियों का उपयोग कर कृषकों द्वारा अपने घरों पर कीटपालन गृहों में कीटपालन कार्य कर कोकून उत्पादन किया जाता है, जिससे कृषकों को प्रति एकड़ प्रति वर्ष औसत रू0 12000 से 15000 की अतिरिक्त आय प्राप्त हो जाती है।