प्रस्तावना

प्रस्तावना रेशम से बुनी, रेशम मित्र की कहानी

विगत वर्षों में जागरूकता प्रशिक्षण योजनान्तर्गत प्रदेश में 50 प्रगतिशील रेशम कोया उत्पादकों/ बुनकरों / रीलर्स को पं0 दीनदयाल उपाध्याय रेशम उत्पादकता पुरस्कार रु० 11000.00 की धनराशि एवं प्रशस्ति पत्र दे कर सम्मानित किया जाता था।

प्रदेश में 3000 मी0टन रेशम धागे के खपत के विपरीत मात्र 350 मी0टन रॉ सिल्क का उत्पादन हो रहा है। जबकि प्रदेश की भूमि एवं जलवायु रेशम उत्पादन के अनुकूल है। रेशम उत्पादन में प्रदेश गैर परम्परागत श्रेणी में आता है इससे गरीब, मध्य एवं उच्च वर्ग जुडा है। रेशमी (फिनिश प्रोडक्ट) कई चरणों में निकल कर आता है। रेशम कीटपालन करते हुए कोया उत्पादन का कार्य कृषको द्वारा, रीलर्स का कार्य धागा उत्पादन, वीवर्स का कार्य रेशम वस्त्रों की बुनाई डिजाइनिंग एवं रंगाई के पश्चात फिनिस प्रोडक्ट के रूप में तैयार हो कर निकलता है जो उपभोक्ताओं को प्राप्त होता है जिससे कई चरणों में अलग-अलग रोजगार का सृजन होता है।

प्रदेश को रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाये जाने का संकल्प है जिससे रेशम उद्योग रोजगार सृजन का हब बन सकता है। कोया उत्पादक से लेकर फिनिश प्रोडेक्टस तैयार करने वाले लाभार्थी एवं उद्यमी की श्रृंखला बनाकर रेशम उत्पादन में प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। बैठक में लिये गये निर्णय के कम में समिति द्वारा उक्त धनराशि से 50 कृषकों के स्थान पर पुरस्कारों की संख्या कम करते हुये पुरस्कार की धनराशि बढाकर उनको जागरूक करते हुए इनोवेटिव (नवाचार) उत्कृष्ठ डिजाइनिंग व अधिकतम विकय के क्षेत्र के उद्यमियों को पुरस्कृत किये जाने का प्रस्ताव है, जो 'पंडित दीन दयाल रेशम रत्न सम्मान' के नाम से जाना जायेगा। "रेशम रत्न सम्मान धनराशि रू0 0.50 लाख (प्रथम पुरस्कार), रू० 0.25 लाख (द्वितीय पुरस्कार), प्रतीक चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किये जाने का प्रस्ताव है। यह पुरस्कार एक वृहद कार्यक्रम आयोजन करते हुए प्रदेश स्तर पर वर्ष में एक बार प्रदान किया जायेगा |